क्रिकेट जो कि इस्ट
इन्डिया कम्पनी के द्वारा भारत मे लाया गया था। इस खेल को अंग्रेज आफिसर अपने
कालोनियों मे खेल कर मन बहलाया करते थे। आखिर 5-5 दिन तक चलने वाला खेल कोई साधारण
भारतीय कैसे खेल सकता था, उनका तो शुबह से शाम तक हाड़ तोड़ मिहनत करने पर दो जुन की
रोटी नसीब होती थी। भारतीयों मे प्राररभ से ही
कबड्डी/कुस्ती/मलखंभ/घुड़सवारी/फुटबाल आदि खेल जन जन मे लोकप्रिय था। क्रिकेट का प्रचार प्रसार भी उन्ही देशों मे
ज्यादा हुआ जहाँ अंग्रेजो की कालोनिया बसी थी या जो देश ब्रिटिस शासन के अन्दर रहा। ब्रिटेन मे यूँ तो प्रारंभ से ही फुट्बाल
ज्यादा लोकप्रिय खेल रहा जो कि अधिक दम खम और उत्साह बाला खेल है पर संभ्रांत कहे
जाने बाले अंग्रेज जो कि विशेषकर प्रशासनिक पदो पर थे मे क्रिकेट ज्यादा था। धीरे
धीरे संभ्रांत भारतीय और भारत के बड़े शहरों मे इसका प्रसार हुआ और यह भद्रजनों का खेल कहा जाने लगा। चूंकि यह
एक साफ सुथरा और अपेक्षाकृत कम दमखम बाला खेल है इसका प्रसार बहुत तेजी से बडे
शहरों मे हुआ।
आजादी के बाद इसके प्रचार और प्रसार मे सबसे
ज्यादा योगदान रेडियो या आकाशवाणी का रहा। टेस्ट मैच का आखों देखा हाल, कमेन्टरी
का था। 70-80 के दशक मे सुदुर गाँवों मे
भी लोग गले मे रेडियो लटकाये खेत खलिहानों काम करते हुए क्रिकेट कमेन्टरी सुनते
दिखायी पड़ जाते थे। चौपालों मे अक्सर एक रेडियों के चारो ओर घेरकर बच्चे के साथ साथ बड़े बुढे भी चाव से क्रिकेट
कमेन्टरी सुने देखे जाते थे। लोग क्रिकेट के बारे मे ज्यादा तो नहीं जानते थे पर
लगने बाले प्रत्येक चौको और छक्के पर जोर की तालियाँ बजती थी। कमेन्टरी का अंदाज
इतना रोमांचक होता था कि लोग अन्य आवश्यक कामो को भी उस दौरान नजर अंदाज करने लगे।
टी वी तो उनदिनों थी नहीं, धीरे धीरे इस कमेन्टरी की दीवानगी इतनी बढ गयी कि किकेट
के टेस्ट मैच के पाँच दिन लोग दिन दिन भर रेडियो से चिपके रहते थे। कालेजों मे
क्लासे खाली रहने लगी, सरकारी कार्यालयों मे तो और भी बुरा हाल रहता था, काम धंधे
को दरकिनार कर सिर्फ चौको और छक्कों की बात होने लगी।
इसका असर बहुत व्यापक हुआ जहाँ पहले गाँवों मे
कबड्डी , कुस्ती बहुत आम था, जहाँ दस लड़के जमा हुये कबड्डी शुरु हो जाटी थी, अक्सर
गाँवों के बीच कबड्डी, कुश्ती और फुटवाल का मैच होते रहते थे धीरे धीरे कम होने
लगे।
फिर आया क्रिकेट का एक दिवशीय टुर्नामेंट का
दौर, क्रिकेट की दीवानगी बढती गयी।गावों से अन्य खेल तो लगभग मृतप्राय हो गये। अब
तो पुराने जमाने के खेल यथा खो-खो, आस पास, छुप छुपैया, बुढिया कबड्डी , कबड्डी,
तो लगभग पूरी तरह से गायब से हो गये। क्रिकेट की लोकप्रियता को उद्योग पतियों ने भुनाना
शुरु कर दिया, क्रिकेट खिलाड़ी, खिलाड़ी से स्टार बन गये, विज्ञापनों के द्वारा उनके
उपर पैसों की बरसात होने लगी। देखते देखते क्रिकेट खिलाड़ी लाखपति और लाखपति से
करोड़पति होते गये। टी वी पर खेल चैनलों का 95% भाग सिर्फ क्रिकेट को समर्पित हो
गये। और तो और सिर्फ क्रिकेट के लिये अलग से कई खेल चैनेल बन गये। हमारे देश के
सत्तासीनों पर भी क्रिकेट ही छाया रहने लगा।
इसका अन्य खेलों पर इसका बहुत व्यापक असर हुआ।
माता पिता भी अब अपने बच्चों को सिर्फ क्रिकेट खेलने को प्रेरित करने लगे।
एथलेटिक्स, फुटवाल, हाकी, कबड्डी, खो-खो खेलने बाले पिछड़े और बैकवर्ड कहलाने लगे।
कुछ विद्यालयों तक ही सिमित रह गये। अन्य खेलो के पदक विजेताओं की कोई विशेष पूछ न
रह गयी। अक्सर सुनने और अखबारों मे खबरें मे पढने को मिलती है कि फलां
अन्तरराष्ट्रीय पदक विजेता रिक्सा चलाते हुये, चाय बेचते हुये, गरीबी के कारण पदक
बेचते हुये दिखाई दिये।
120 करोड़ का देश आज सिर्फ और सिर्फ क्रिकेट
जैसे संभ्रांत लोगो के खेल मय हो गया है। गांव शहरों के गली कुचों मे निकल जाइये
बच्चे सिर्फ क्रिकेट खेलते नजर आते है।
LONG LIVE
CRICKET.
अब
आइये इस क्रिकेट के अन्य पहलु को भी देखें, आज क्रिकेट कौन कौन देश खेलते है,
आस्ट्रेलिया, न्युजीलैंड, वेस्ट इन्डीज, पाकिस्तान, श्रीलंका, बांगलादेश, दक्षिण
अफ्रिका और स्वंय इस खेल का जनक इंगलैंड। इंगलैंड को छोड़कर अन्य सभी देश कभी ना
कभी ब्रिटेन के अधिन रह चुके है। यानी यह खेल हमे अंग्रेजों के द्वारा दिया गया
नायाव तोहफा है। शायद अंग्रेज भी यह नही सोचे होंगे कि उनका दिया गया तोहफा इतना
लोकप्रिय होगा कि लोग अपना सब काम धंधा को बंद कर टी वी, रेडियो, इन्टर्नेट मे
ओनलाइन स्कोर से चिपक जायेगें और अपने दादा परदादा के जमाने से खेलते आ रहे खेल को
स्वंय अपने हाथों से दफन कर गौरवान्वित महशुश करेगें। आज यह कहना अतिश्योक्ति नहीं
होगी कि आम भारतीय क्रिकेट का एडिक्ट सा हो गया है।
इंगलैंड को छोड़कर क्रिकेट खेलने बाले लगभग सभी देश विकासशील देश की श्रेणी मे आते
है. और कभी भी विकसित देश के कतार मे खड़ा नही हो पायेगें। कोई भी विकसित देश
यथा अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, रुस, इटली,
स्वीटजर्लैंड, और तो और चीन भी क्रिकेट नही खेलता।
किसी भी महत्वपूर्ण अन्तर्राष्ट्रीय खेल
टुर्नामेंट यथा ओलम्पिक, एसियन गेम्स, और तो और राष्ट्रमंडल खेलों (जो कभी अंग्रेजों के गुलाम रहे देशों के बीच
खेला जाता है) मे भी क्रिकेट शामिल नही है, यह इस खेल की महानता को प्रदर्शित करता
है। आखिर संभ्रांत लोगों का खेल आम लोगो के खेल मे शामिल कैसे हो सकता है। आज
क्रिकेट करोड़पति, अरबपति खिलाड़ियों का खेल है, यह अन्य खेलों के महोत्सव मे कैसे
शामिल हो सकता है और वे अन्य खेल के कंगाल (अपेक्षाकृत) खिलाड़ियों के साथ कैसे रह
सकते है। क्रिकेट खिलाड़ियो को 7 स्टार की
सुविधाये मिलती है, एक चौका या छक्का
मारने पर करोड़ रुपये तक आसानी से मिल जाता है जबकि अन्तरराष्ट्रीय
एथलेटिक्स पदक विजेता को महज कुछ लाख। किसी 5वीं कक्षा के छात्र को पूछ लें वह कम
से कम 10-20 भारतीय और विदेशी खिलाड़ियो का नाम आसानी से बता देगें उनके फोटो पहचान
लेगें पर एक भी ओलम्पिक पदक विजेता/ एशियन गेम्स विजेता का नाम शायद सौ छात्र मो
कोई एक बता पायेगा। हमारा टीवी भी उन वेवकुफ (महान) खिलाड़ी का एकाध बार न्युज
दिखाकर अपने कर्तव्य की ईतिश्री कर लेता है।
120 करोड़ आबादी का हमारा भारत, ओलम्पिक मे एक
अदद रजत पद के लिये ललायित रहता है। आइये देखें क्रिकेट खेलने वाले देशों मे अन्य
खेलों के प्रति क्या रुझान है। क्रिकेट के जन्म दाता देश मे क्रिकेट से ज्यादा फुटवाल
लोकप्रिय है, फुट्वाल मैचों के घरेलु और क्लबो के बीच प्रतिस्पर्द्धाओं मे मैदान खचाखच
भरा रहता है।लोगों मे वैसा ही जुनुन दिखाई देता ह।, जैसा भारत मे क्रिकेट मैच के
दौरान देखने को मिलता है। 2012 लंदन ओलम्पिक के पदक तालिका को देखे क्रिकेट खेलनेवाले देश इंगलैंड- 29 स्वर्ण, 17 रजत 19 ताम्र कुल 65 पदक, आस्ट्रेलिया 7 स्वर्ण, 16रजत जतयग ताम्र, न्युजीलैंड 06 स्वर्ण, 2 रजत 5 ताम्र कुल 13 पदक और भारत को 0स्वर्ण, 02 रजत 4 ताम्र यानी ब्रिटेन आस्ट्रेलिया न्युजीलैंड, आदि देश क्रिकेट सेज्यादा प्रोत्साहन अन्य खेलों के प्रसार और प्रचार मे दिया। ईन देशों मे क्रिकेट के साथ ही अन्य खेलों पर भी पूरा
ध्यान दिया जाता है वरन अन्य खेलों के खिलाड़ियों को ज्यादा मान सम्मान मिलता है। पिछले
कुछ ओलम्पिक के पदक तालिका को देखें तो शीर्ष मे बैठे देशों मे क्रिकेट खेलने वाला
सिर्फ इंगलैंड ही है।
कभी हाकी मे लगातार तीन ओलम्पिक खेलों में
स्वर्ण जीतने वाला भारत, पिछले कई बार से ओलम्पिक के लिये क्वालिफाई भी नही कर पा
रहा है। हाकी का जादुगर मेजर ध्यानचंद जिसने हिटलर को भी अपने खेल से मंत्रमुग्ध
कर दिया था, सभी देशों को धुल चटा देने वाला हाकी का इस जादुगर के कारण भारत को
विश्व मे एक सम्मान मिला था। पर
वह सम्मान जो अमेरिका, जर्मनी, ईटली, फ्रांस, रुस, चीन आदि देशों को धुल चटा कर वह
भी लगातार तीन ओलम्पिक खेलों मे, भारत को दिलायी थी, शायद आज के दौर के लिये
नाकाफी था तभी तो वह महान जादुगर भारत रत्न के काबिल नही समझा गया। यदि ध्यानचंद
जैसे महान खिलाड़ी को उचित सम्मान नही मिला तो कोई पागल ही होगा जो क्रिकेट छोड़ कर
कोई अन्य खेल, खेल कर अपनी उर्जा, समय और आरंभिक पैसा बर्बाद करेगा।
भारत को अन्तरराष्ट्रीय दवाव बनाकर क्रिकेट को
ओलम्पिक आदि खेल प्रतिस्पर्धाओं मे शामिल करने का दवाव बनाना चाहिये। या किकेट को
महिमामंडन छोड़कर फुट्वाल, हाकी, /कुश्ती/ एथलेटिक्स खिलाड़ियों की
दुर्दशा/कठिनाईयों/आर्थिक कठिनाइयों की ओर ध्यान देना चाहिये ताकि 120 करोड़ का देश सिर्फ क्रिकेट और घोटालो
के लिये ना जाना जाये। हमारे देश मे होनहारों और प्रतिभा की कमी नही है सिर्फ
तराशने का खर्च सरकार को उठाना है।