भगवान राम की प्रामाणिकता
हम भारतीय विश्व की प्राचीनतम सभ्यता के वारिस
है तथा हमें अपने गौरवशाली इतिहास तथा उत्कृष्ट प्राचीन संस्कृति पर गर्व होना
चाहिए। किंतु दीर्घकाल की परतंत्रता ने हमारे गौरव को इतना गहरा आघात पहुंचाया कि
हम अपनी प्राचीन सभ्यता तथा संस्कृति के बारे में खोज करने की तथा उसको समझने की
इच्छा ही छोड़ बैठे। परंतु स्वतंत्र भारत में पले तथा पढ़े-लिखे युवक-युवतियां
सत्य की खोज करने में समर्थ है तथा छानबीन के आधार पर निर्धारित तथ्यों तथा जीवन
मूल्यों को विश्व के आगे गर्वपूर्वक रखने का साहस भी रखते है। श्रीराम द्वारा स्थापित
आदर्श हमारी प्राचीन परंपराओं तथा जीवन मूल्यों के अभिन्न अंग है। वास्तव में
श्रीराम भारतीयों के रोम-रोम में बसे है। रामसेतु पर उठ रहे तरह-तरह के सवालों से
श्रद्धालु जनों की जहां भावना आहत हो रही है,वहीं लोगों में इन प्रश्नों के समाधान की जिज्ञासा भी है।
हम इन प्रश्नों के उत्तर खोजने का प्रयत्न करे:- श्रीराम की कहानी प्रथम बार
महर्षि वाल्मीकि ने लिखी थी। वाल्मीकि रामायण श्रीराम के अयोध्या में सिंहासनारूढ़
होने के बाद लिखी गई। महर्षि वाल्मीकि एक महान खगोलविद् थे। उन्होंने राम के जीवन
में घटित घटनाओं से संबंधित तत्कालीन ग्रह, नक्षत्र और राशियों की स्थिति का वर्णन किया है। इन खगोलीय
स्थितियों की वास्तविक तिथियां 'प्लैनेटेरियम
साफ्टवेयर' के माध्यम से जानी जा
सकती है। भारतीय राजस्व सेवा में कार्यरत पुष्कर भटनागर ने अमेरिका से 'प्लैनेटेरियम गोल्ड' नामक साफ्टवेयर प्राप्त किया, जिससे सूर्य/ चंद्रमा के ग्रहण की तिथियां तथा अन्य ग्रहों
की स्थिति तथा पृथ्वी से उनकी दूरी वैज्ञानिक तथा खगोलीय पद्धति से जानी जा सकती
है। इसके द्वारा उन्होंने महर्षि वाल्मीकि द्वारा वर्णित खगोलीय स्थितियों के आधार
पर आधुनिक अंग्रेजी कैलेण्डर की तारीखें निकाली है। इस प्रकार उन्होंने श्रीराम के
जन्म से लेकर 14 वर्ष के वनवास के बाद
वापस अयोध्या पहुंचने तक की घटनाओं की तिथियों का पता लगाया है। इन सबका अत्यंत
रोचक एवं विश्वसनीय वर्णन उन्होंने अपनी पुस्तक 'डेटिंग द एरा ऑफ लार्ड राम' (इस कित्ताब को लिंक से डाउनलोड कर सकते है) में किया है। इसमें से कुछ महत्वपूर्ण उदाहरण यहां भी
प्रस्तुत किए जा रहे है।
श्रीराम की जन्म तिथि
महर्षि वाल्मीकि ने बालकाण्ड के सर्ग 18 के श्लोक 8 और 9 में वर्णन किया है कि श्रीराम का जन्म चैत्र मास के शुक्ल
पक्ष की नवमी तिथि को हुआ। उस समय सूर्य,मंगल,गुरु,शनि व शुक्र ये पांच ग्रह उच्च स्थान में विद्यमान थे तथा
लग्न में चंद्रमा के साथ बृहस्पति विराजमान थे। ग्रहों,नक्षत्रों तथा राशियों की स्थिति इस प्रकार थी-सूर्य मेष
में,मंगल मकर में,बृहस्पति कर्क में, शनि तुला में और शुक्र मीन में थे। चैत्र माह में शुक्ल पक्ष नवमी की दोपहर 12 बजे का समय था।
जब उपर्युक्त खगोलीय
स्थिति को कंप्यूटर में डाला गया तो 'प्लैनेटेरियम गोल्ड साफ्टवेयर' के माध्यम से यह
निर्धारित किया गया कि 10 जनवरी,
5114 ई.पू. दोपहर के समय अयोध्या के लेटीच्यूड तथा
लांगीच्यूड से ग्रहों, नक्षत्रों तथा
राशियों की स्थिति बिल्कुल वही थी, जो महर्षि
वाल्मीकि ने वर्णित की है। इस प्रकार श्रीराम का जन्म 10 जनवरी सन् 5114 ई. पू.(7117 वर्ष पूर्व)को हुआ जो
भारतीय कैलेण्डर के अनुसार चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि है और समय 12
बजे से 1 बजे के बीच का है।
वाल्मीकि रामायण के
अयोध्या काण्ड (2/4/18) के अनुसार
महाराजा दशरथ श्रीराम का राज्याभिषेक करना चाहते थे क्योंकि उस समय उनका(दशरथ जी)
जन्म नक्षत्र सूर्य, मंगल और राहु से घिरा हुआ
था। ऐसी खगोलीय स्थिति में या तो राजा मारा जाता है या वह किसी षड्यंत्र का शिकार
हो जाता है। राजा दशरथ मीन राशि के थे और उनका नक्षत्र रेवती था ये सभी तथ्य
कंप्यूटर में डाले तो पाया कि 5 जनवरी वर्ष 5089
ई.पू.के दिन सूर्य,मंगल और राहु तीनों मीन राशि के रेवती नक्षत्र पर स्थित थे।
यह सर्वविदित है कि राज्य तिलक वाले दिन ही राम को वनवास जाना पड़ा था। इस प्रकार
यह वही दिन था जब श्रीराम को अयोध्या छोड़ कर 14 वर्ष के लिए वन में जाना पड़ा। उस समय श्रीराम की आयु 25
वर्ष (5114- 5089) की निकलती है तथा वाल्मीकि रामायण में अनेक श्लोक यह इंगित
करते है कि जब श्रीराम ने 14 वर्ष के लिए
अयोध्या से वनवास को प्रस्थान किया तब वे 25 वर्ष के थे।
खर-दूषण के साथ युद्ध के
समय सूर्यग्रहण
वाल्मीकि रामायण के अनुसार वनवास के 13 वें साल के मध्य में श्रीराम का खर-दूषण से युद्ध हुआ तथा
उस समय सूर्यग्रहण लगा था और मंगल ग्रहों के मध्य में था। जब इस तारीख के बारे में
कंप्यूटर साफ्टवेयर के माध्यम से जांच की गई तो पता चला कि यह तिथि 5 अक्टूबर 5077 ई.पू. ; अमावस्या थी। इस दिन
सूर्य ग्रहण हुआ जो पंचवटी (20 डिग्री सेल्शियस
एन 73 डिग्री सेल्शियस इ) से
देखा जा सकता था। उस दिन ग्रहों की स्थिति बिल्कुल वैसी ही थी, जैसी वाल्मीकि जी ने वर्णित की- मंगल ग्रह बीच में था-एक
दिशा में शुक्र और बुध तथा दूसरी दिशा में सूर्य तथा शनि थे।
अन्य महत्वपूर्ण तिथियां
किसी एक समय पर बारह में से छह राशियों को ही
आकाश में देखा जा सकता है। वाल्मीकि रामायण में हनुमान के लंका से वापस समुद्र पार
आने के समय आठ राशियों, ग्रहों तथा
नक्षत्रों के दृश्य को अत्यंत रोचक ढंग से वर्णित किया गया है। ये खगोलीय स्थिति
श्री भटनागर द्वारा प्लैनेटेरियम के माध्यम से प्रिन्ट किए हुए 14 सितंबर 5076 ई.पू. की सुबह 6:30
बजे से सुबह 11 बजे तक के आकाश से बिल्कुल मिलती है। इसी प्रकार अन्य
अध्यायों में वाल्मीकि द्वारा वर्णित ग्रहों की स्थिति के अनुसार कई बार दूसरी
घटनाओं की तिथियां भी साफ्टवेयर के माध्यम से निकाली गई जैसे श्रीराम ने अपने 14
वर्ष के वनवास की यात्रा 2 जनवरी 5076 ई.पू.को पूर्ण की
और ये दिन चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी ही था। इस प्रकार जब श्रीराम अयोध्या
लौटे तो वे 39 वर्ष के थे (5114-5075)।
वाल्मीकि रामायण के
अनुसार श्रीराम की सेना ने रामेश्वरम से श्रीलंका तक समुद्र के ऊपर पुल बनाया। इसी पुल (रामसेतु) को पार कर श्रीराम ने रावण पर विजय पाई। हाल ही में नासा ने इंटरनेट पर एक
सेतु के वो अवशेष दिखाए है, जो पॉक स्ट्रेट
में समुद्र के भीतर रामेश्वरम(धनुषकोटि) से लंका में तलाई मन्नार तक 30 किलोमीटर लंबे रास्ते में पड़े है। वास्तव में वाल्मीकि
रामायण में लिखा है कि विश्वकर्मा की तरह नल एक महान शिल्पकार थे जिनके मार्गदर्शन
में पुल का निर्माण करवाया गया। यह निर्माण वानर सेना द्वारा यंत्रों के उपयोग से
समुद्र तट पर लाई गई शिलाओं, चट्टानों,
पेड़ों तथा लकड़ियों के उपयोग से किया गया।
महान शिल्पकार नल के निर्देशानुसार महाबलि वानर बड़ी-बड़ी शिलाओं तथा चट्टानों को
उखाड़कर यंत्रों द्वारा समुद्र तट पर ले आते थे। साथ ही वो बहुत से बड़े-बड़े
वृक्षों को, जिनमें ताड़, नारियल,बकुल,आम,अशोक आदि शामिल
थे, समुद्र तट पर पहुंचाते थे। नल ने कई वानरों को
बहुत लम्बी रस्सियां दे दोनों तरफ खड़ा कर दिया था। इन रस्सियों के बीचोबीच पत्थर,चट्टानें, वृक्ष तथा लताएं
डालकर वानर सेतु बांध रहे थे। इसे बांधने में 5 दिन का समय लगा। यह पुल श्रीराम द्वारा तीन दिन की खोजबीन
के बाद चुने हुए समुद्र के उस भाग पर बनवाया गया जहां पानी बहुत कम गहरा था तथा
जलमग्न भूमार्ग पहले से ही उपलब्ध था। इसलिए यह विवाद व्यर्थ है कि रामसेतु मानव
निर्मित है या नहीं, क्योंकि यह पुल जलमग्न,
द्वीपों, पर्वतों तथा बरेतीयों वाले प्राकृतिक मार्गो को जोड़कर उनके
ऊपर ही बनवाया गया था।
भू-विज्ञान विभाग, भारत सरकार, का शोध (मार्च 2007), परन्तु, कुछ मज़बूत तर्को के साथ इसे मानव निर्मित बताता है। शोध का सारांश कुछ इस प्रकार है -
रामसेतु प्राकृतिक तौर पर नहीं बना - कोरल चट्टानों और रीफ से बने इस पुल की स्थापना की पुष्टि आधुनिक सैटेलाइट द्वारा खींचे गये चित्रों की मदद से की गयी है जिसके अनुसार कहा गया है कि यह एक प्राकृतिक नहीं, बल्कि मानवीय रचना है और इस बात की पुष्टि जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया द्वारा पेश की गयी एक रिपोर्ट में की गयी है जिसे सरकार द्वारा जनता से छुपाया गया। जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (भारत सरकार का भू विज्ञान विभाग) के पूर्व निदेशक और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशन टैक्नोलॉजी के सदस्य डॉ. बद्रीनारायण कहते हैं कि इस तरह की प्राकृतिक बनावट मुश्किल से ही दिखती है। यह तभी हो सकता है, जब इसे किसी ने बनाया हो। कुछ शिलाखंड तो इतने हल्के हैं कि वे पानी पर तैर सकते हैं।
मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम की ऐतिहासिकता को चुनौती देनेवालों को चुनौती देता
एक शोध सामने आया है, जो सिद्ध करता है कि राम
पौराणिक नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक
व्यक्तित्व थे। उनका जन्म 5114 ईसापूर्व 10 जनवरी को हुआ था। इस तरह अगली 10 जनवरी को राम के जन्म के 7122 साल पूरे हो जाएंगे।
श्री राम के बारे में यह
शोध चेन्नई की एक गैरसरकारी संस्था भारत ज्ञान द्वारा पिछले छह वर्षो में किया गया
है। मुंबई में अनेक वैज्ञानिकों, विद्वानों,
व्यवसाय जगत की हस्तियों के सामने इस शोध से
संबंधित तथ्यों पर प्रकाश डालते हुए इसके संस्थापक ट्रस्टी डीके हरी ने एक समारोह
में बताया कि इस शोध में वाल्मीकि रामायण को मूल आधार मानते हुए अनेक वैज्ञानिक,
ऐतिहासिक, भौगोलिक, ज्योतिषीय और
पुरातात्विक तथ्यों की मदद ली गई है। जिनके आधार पर कहा जा सकता है कि राम हमारे
गौरवशाली इतिहास का ही एक अंग थे। इस समारोह का आयोजन भारत ज्ञान ने आध्यात्मिक
गुरु श्री श्री रविशंकर की संस्था आर्ट आफ लिविंग के साथ मिलकर किया था।
शोध से संबंधित
प्रस्तुतिकरण के बाद इसका सीडी एवं वेबसाइट लांच करते हुए श्री श्री रविशंकर ने
कहा कि हमारे देश को ऐसे वैज्ञानिक शोधों की आवश्यकता है, जो सिलसिलेवार तथ्यों पर आधारित हों और हमारी हमारी प्राचीन
परंपराओं का खुलासा करते हों। लोगों से ऐसे शोधों को प्रोत्साहन देने की अपील करते
हुए श्री श्री रविशंकर ने कहा कि हमें ऐसे तथ्यों के आधार पर दूसरों के सामने अपनी
बात रखनी चाहिए। अन्यथा लोग हमारे इतिहास को पौराणिक कहानियां ही बताते रहेंगे।
गौरतलब है कि कुछ वर्ष पूर्व वाराणसी स्थित श्रीमद् आद्यजगद्गुरु शंकराचार्य शोध
संस्थान के संस्थापक स्वामी ज्ञानानंद सरस्वती ने भी अनेक संस्कृत ग्रंथों के आधार
पर राम और कृष्ण की ऐतिहासिकता को स्थापित करने का दावा किया था।
No comments:
Post a Comment