Friday, November 29, 2013

क्रिकेट मेरी राय में।

क्रिकेट जो कि इस्ट इन्डिया कम्पनी के द्वारा भारत मे लाया गया था। इस खेल को अंग्रेज आफिसर अपने कालोनियों मे खेल कर मन बहलाया करते थे। आखिर 5-5 दिन तक चलने वाला खेल कोई साधारण भारतीय कैसे खेल सकता था, उनका तो शुबह से शाम तक हाड़ तोड़ मिहनत करने पर दो जुन की रोटी नसीब होती थी। भारतीयों मे प्राररभ से ही कबड्डी/कुस्ती/मलखंभ/घुड़सवारी/फुटबाल आदि खेल जन जन मे लोकप्रिय था।  क्रिकेट का प्रचार प्रसार भी उन्ही देशों मे ज्यादा हुआ जहाँ अंग्रेजो की कालोनिया बसी थी या जो देश  ब्रिटिस शासन के अन्दर रहा।  ब्रिटेन मे यूँ तो प्रारंभ से ही फुट्बाल ज्यादा लोकप्रिय खेल रहा जो कि अधिक दम खम और उत्साह बाला खेल है पर संभ्रांत कहे जाने बाले अंग्रेज जो कि विशेषकर प्रशासनिक पदो पर थे मे क्रिकेट ज्यादा था। धीरे धीरे संभ्रांत भारतीय और भारत के बड़े शहरों मे इसका प्रसार हुआ  और यह भद्रजनों का खेल कहा जाने लगा। चूंकि यह एक साफ सुथरा और अपेक्षाकृत कम दमखम बाला खेल है इसका प्रसार बहुत तेजी से बडे शहरों मे हुआ।
आजादी के बाद इसके प्रचार और प्रसार मे सबसे ज्यादा योगदान रेडियो या आकाशवाणी का रहा। टेस्ट मैच का आखों देखा हाल, कमेन्टरी का था। 70-80 के दशक मे सुदुर गाँवों  मे भी लोग गले मे रेडियो लटकाये खेत खलिहानों काम करते हुए क्रिकेट कमेन्टरी सुनते दिखायी पड़ जाते थे। चौपालों मे अक्सर एक रेडियों के चारो ओर घेरकर  बच्चे के साथ साथ बड़े बुढे भी चाव से क्रिकेट कमेन्टरी सुने देखे जाते थे। लोग क्रिकेट के बारे मे ज्यादा तो नहीं जानते थे पर लगने बाले प्रत्येक चौको और छक्के पर जोर की तालियाँ बजती थी। कमेन्टरी का अंदाज इतना रोमांचक होता था कि लोग अन्य आवश्यक कामो को भी उस दौरान नजर अंदाज करने लगे। टी वी तो उनदिनों थी नहीं, धीरे धीरे इस कमेन्टरी की दीवानगी इतनी बढ गयी कि किकेट के टेस्ट मैच के पाँच दिन लोग दिन दिन भर रेडियो से चिपके रहते थे। कालेजों मे क्लासे खाली रहने लगी, सरकारी कार्यालयों मे तो और भी बुरा हाल रहता था, काम धंधे को दरकिनार कर सिर्फ चौको और छक्कों की बात होने लगी।
इसका असर बहुत व्यापक हुआ जहाँ पहले गाँवों मे कबड्डी , कुस्ती बहुत आम था, जहाँ दस लड़के जमा हुये कबड्डी शुरु हो जाटी थी, अक्सर गाँवों के बीच कबड्डी, कुश्ती और फुटवाल का मैच होते रहते थे धीरे धीरे कम होने लगे।
फिर आया क्रिकेट का एक दिवशीय टुर्नामेंट का दौर, क्रिकेट की दीवानगी बढती गयी।गावों से अन्य खेल तो लगभग मृतप्राय हो गये। अब तो पुराने जमाने के खेल यथा खो-खो, आस पास, छुप छुपैया, बुढिया कबड्डी , कबड्डी, तो लगभग पूरी तरह से गायब से हो गये। क्रिकेट की लोकप्रियता को उद्योग पतियों ने भुनाना शुरु कर दिया, क्रिकेट खिलाड़ी, खिलाड़ी से स्टार बन गये, विज्ञापनों के द्वारा उनके उपर पैसों की बरसात होने लगी। देखते देखते क्रिकेट खिलाड़ी लाखपति और लाखपति से करोड़पति होते गये। टी वी पर खेल चैनलों का 95% भाग सिर्फ क्रिकेट को समर्पित हो गये। और तो और सिर्फ क्रिकेट के लिये अलग से कई खेल चैनेल बन गये। हमारे देश के सत्तासीनों पर भी क्रिकेट ही छाया रहने लगा।
इसका अन्य खेलों पर इसका बहुत व्यापक असर हुआ। माता पिता भी अब अपने बच्चों को सिर्फ क्रिकेट खेलने को प्रेरित करने लगे। एथलेटिक्स, फुटवाल, हाकी, कबड्डी, खो-खो खेलने बाले पिछड़े और बैकवर्ड कहलाने लगे। कुछ विद्यालयों तक ही सिमित रह गये। अन्य खेलो के पदक विजेताओं की कोई विशेष पूछ न रह गयी। अक्सर सुनने और अखबारों मे खबरें मे पढने को मिलती है कि फलां अन्तरराष्ट्रीय पदक विजेता रिक्सा चलाते हुये, चाय बेचते हुये, गरीबी के कारण पदक बेचते हुये दिखाई दिये।
120 करोड़ का देश आज सिर्फ और सिर्फ क्रिकेट जैसे संभ्रांत लोगो के खेल मय हो गया है। गांव शहरों के गली कुचों मे निकल जाइये बच्चे सिर्फ क्रिकेट खेलते नजर आते है। 
               LONG LIVE CRICKET.
अब आइये इस क्रिकेट के अन्य पहलु को भी देखें, आज क्रिकेट कौन कौन देश खेलते है, आस्ट्रेलिया, न्युजीलैंड, वेस्ट इन्डीज, पाकिस्तान, श्रीलंका, बांगलादेश, दक्षिण अफ्रिका और स्वंय इस खेल का जनक इंगलैंड। इंगलैंड को छोड़कर अन्य सभी देश कभी ना कभी ब्रिटेन के अधिन रह चुके है। यानी यह खेल हमे अंग्रेजों के द्वारा दिया गया नायाव तोहफा है। शायद अंग्रेज भी यह नही सोचे होंगे कि उनका दिया गया तोहफा इतना लोकप्रिय होगा कि लोग अपना सब काम धंधा को बंद कर टी वी, रेडियो, इन्टर्नेट मे ओनलाइन स्कोर से चिपक जायेगें और अपने दादा परदादा के जमाने से खेलते आ रहे खेल को स्वंय अपने हाथों से दफन कर गौरवान्वित महशुश करेगें। आज यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि आम भारतीय क्रिकेट का एडिक्ट सा हो गया है।
इंगलैंड को छोड़कर क्रिकेट खेलने बाले  लगभग सभी देश विकासशील देश की श्रेणी मे आते है. और कभी भी विकसित देश के कतार मे खड़ा नही हो पायेगें। कोई भी विकसित देश यथा  अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, रुस, इटली, स्वीटजर्लैंड, और तो और चीन भी क्रिकेट नही खेलता।
किसी भी महत्वपूर्ण अन्तर्राष्ट्रीय खेल टुर्नामेंट यथा ओलम्पिक, एसियन गेम्स, और तो और राष्ट्रमंडल खेलों  (जो कभी अंग्रेजों के गुलाम रहे देशों के बीच खेला जाता है) मे भी क्रिकेट शामिल नही है, यह इस खेल की महानता को प्रदर्शित करता है। आखिर संभ्रांत लोगों का खेल आम लोगो के खेल मे शामिल कैसे हो सकता है। आज क्रिकेट करोड़पति, अरबपति खिलाड़ियों का खेल है, यह अन्य खेलों के महोत्सव मे कैसे शामिल हो सकता है और  वे अन्य खेल के  कंगाल (अपेक्षाकृत) खिलाड़ियों के साथ कैसे रह सकते है। क्रिकेट खिलाड़ियो  को 7 स्टार की सुविधाये मिलती है, एक चौका या छक्का  मारने पर करोड़ रुपये तक आसानी से मिल जाता है जबकि अन्तरराष्ट्रीय एथलेटिक्स पदक विजेता को महज कुछ लाख। किसी 5वीं कक्षा के छात्र को पूछ लें वह कम से कम 10-20 भारतीय और विदेशी खिलाड़ियो का नाम आसानी से बता देगें उनके फोटो पहचान लेगें पर एक भी ओलम्पिक पदक विजेता/ एशियन गेम्स विजेता का नाम शायद सौ छात्र मो कोई एक बता पायेगा। हमारा टीवी भी उन वेवकुफ (महान) खिलाड़ी का एकाध बार न्युज दिखाकर अपने कर्तव्य की ईतिश्री कर लेता है।
120 करोड़ आबादी का हमारा भारत, ओलम्पिक मे एक अदद रजत पद के लिये ललायित रहता है। आइये देखें क्रिकेट खेलने वाले देशों मे अन्य खेलों के प्रति क्या रुझान है। क्रिकेट के जन्म दाता देश मे क्रिकेट से ज्यादा फुटवाल लोकप्रिय है, फुट्वाल मैचों के घरेलु और क्लबो के बीच प्रतिस्पर्द्धाओं मे मैदान खचाखच भरा रहता है।लोगों मे वैसा ही जुनुन दिखाई देता ह।, जैसा भारत मे क्रिकेट मैच के दौरान देखने को मिलता है। 2012 लंदन ओलम्पिक के पदक तालिका को देखे क्रिकेट खेलनेवाले देश इंगलैंड- 29 स्वर्ण, 17 रजत 19 ताम्र कुल 65 पदक, आस्ट्रेलिया 7 स्वर्ण, 16रजत जतयग ताम्र, न्युजीलैंड 06 स्वर्ण, 2 रजत 5 ताम्र कुल 13 पदक और भारत को 0स्वर्ण, 02 रजत 4 ताम्र यानी ब्रिटेन आस्ट्रेलिया न्युजीलैंड, आदि देश क्रिकेट सेज्यादा प्रोत्साहन  अन्य खेलों के प्रसार और प्रचार मे दिया। ईन देशों  मे क्रिकेट के साथ ही अन्य खेलों पर भी पूरा ध्यान दिया जाता है वरन अन्य खेलों के खिलाड़ियों को ज्यादा मान सम्मान मिलता है। पिछले कुछ ओलम्पिक के पदक तालिका को देखें तो शीर्ष मे बैठे देशों मे क्रिकेट खेलने वाला सिर्फ इंगलैंड ही है।

कभी हाकी मे लगातार तीन ओलम्पिक खेलों में स्वर्ण जीतने वाला भारत, पिछले कई बार से ओलम्पिक के लिये क्वालिफाई भी नही कर पा रहा है। हाकी का जादुगर मेजर ध्यानचंद जिसने हिटलर को भी अपने खेल से मंत्रमुग्ध कर दिया था, सभी देशों को धुल चटा देने वाला हाकी का इस जादुगर के कारण भारत को विश्व मे एक  सम्मान मिला था। पर वह सम्मान जो अमेरिका, जर्मनी, ईटली, फ्रांस, रुस, चीन आदि देशों को धुल चटा कर वह भी लगातार तीन ओलम्पिक खेलों मे, भारत को दिलायी थी, शायद आज के दौर के लिये नाकाफी था तभी तो वह महान जादुगर भारत रत्न के काबिल नही समझा गया। यदि ध्यानचंद जैसे महान खिलाड़ी को उचित सम्मान नही मिला तो कोई पागल ही होगा जो क्रिकेट छोड़ कर कोई अन्य खेल, खेल कर अपनी उर्जा, समय और आरंभिक पैसा बर्बाद करेगा।

भारत को अन्तरराष्ट्रीय दवाव बनाकर क्रिकेट को ओलम्पिक आदि खेल प्रतिस्पर्धाओं मे शामिल करने का दवाव बनाना चाहिये। या किकेट को महिमामंडन छोड़कर फुट्वाल, हाकी, /कुश्ती/ एथलेटिक्स खिलाड़ियों की दुर्दशा/कठिनाईयों/आर्थिक कठिनाइयों की ओर ध्यान देना चाहिये  ताकि 120 करोड़ का देश सिर्फ क्रिकेट और घोटालो के लिये ना जाना जाये। हमारे देश मे होनहारों और प्रतिभा की कमी नही है सिर्फ तराशने का खर्च सरकार को उठाना है।  

Sunday, March 24, 2013



आज  सुदर्शन टी वी के सौजन्य से एक अत्यंत ही दुखद और शर्मनाक जानकारी मिली की हमारे महान स्वत्रंता सेनानी और भारती युवाओं का आदर्श, अमर शहीद भगत सिंह, राजागुरु, सुखदेव, चन्द्रशेखर आजाद को भारत सरकार ने स्वत्रंता सेनानी और शहीद मानने से इंकार कर दिया है। यह जानकारी सुचना के अधिकार के तहत मांगी गयी जानकारी पर भारत सरकार के द्वारा दी गयी है। इस जानकरी से न सिर्फ भारत के करोड़ों लोगों के मान्यताओं को ठेस पहुँचा है, ब्लकि भारत सरकार ने अपने को विवेकहीन, विचारशुन्य और  अंग्रेजो की कठपुतली (रिमोट से चलने वाला) होने का प्रमाण भी दिया है।  
क्या भारत सरकार या कहें सोनिया गान्धी की सरकार, भारत के इन महान बलिदानियों और युवाओं के आदर्श इन महान शहीदों, जिसके हुंकार और सर्वस्व बलिदान के कारण ही आज वे सत्तासुख भोग रहें है, के स्थान पर राजीव गान्धी और राहुल गान्धी जैसे सामान्य व्यक्ति,  सत्ता सुख के लिए अपने को समर्पित  करने बाले, और देश का अथाह पैसा लूट कर विदेशों में जमा करने वाले कों आज के युवाओं का आदर्श बनाना चाहती है?
यह कितने आश्चर्य की बात है जिस भगत सिंह को पाकिस्तान महान स्वत्रंता सेनानी और सबसे बड़ा शहीद मानती है उसे हमारी कान्ग्रेसी सरकार एक आतंकवादी मानती है। थू है ऐसी सरकार पर्। जो अपने देश के बलिदानियों को, स्वत्रंता संग्राम के अग्रगण्य सेनानितों को सम्मान भी नही दे सकती है।   
एक षडयंत्र के तहत धीरे धीरे भारतीय युवायों और बच्चों को हमारे गौरवशाली ईतिहास के नायकों, स्वत्रंता सग्राम के महानायकों और राष्ट्रनायको के कारनामों और  अदम्य साहस के साथ विपरीत परिस्थितियों मे भी देश और संस्कृति पर मर मिटने की कहानियों से दूर ले जाया जा रहा है, और  पूरे जोर शोर से यह भ्रम फैलाने की कोशिश की जा रही है कि भारतीय स्वत्रंता संग्राम मे सिर्फ और सिर्फ जवाहर लाल नेहरु और महात्मा गांन्धी का ही हाथ था।  
दे दी हमें आजादी बिना खड़ग़ बिना ढाल       सावरमति के संत तुने कर दिया कमाल


आजादी के बाद सरकार द्वारा इन महान बलिदानियों को तुरंत मरणोपरांत भारत रत्न देना चाहिये था। इससे कम से कम हम इनके अमुल्य बलिदान को सम्मान दे सकते थे, पर इसके विपरीत इन्हें स्वत्रंता  सेनानी के रुप मे मान्यता तक नही दी गई। क्या इसके पीछे अंग्रेजों के साथहुई कोई डील या समझौता है जिसे ये कान्ग्रेसी सरकार सामने नहीं ला रही है। 1947 कोसत्ता हस्तांतरण के वक्त का दस्तावेज आज तक सार्वजनिक नहीं किया गया है।
इस संधि की शर्तों के अनुसार भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, अशफाकुल्लाह, रामप्रसाद विस्मिल जैसे लोग आतंकवादी थे और यही हमारे syllabus में पढाया जाता था बहुत दिनों तक तथा अभी कुछ समय पहले तक ICSE बोर्ड के किताबों में भगत सिंह को आतंकवादी ही बताया जा रहा था, वो तो भला हो कुछ लोगों का जिन्होंने नयायालय में एक केस किया और अदालत ने इसे हटाने का आदेश दिया है (ये समाचार मैंने इन्टरनेट पर ही अभी कुछ दिन पहले देखा था)

आज भारतीय स्वत्रंता सग्राम के वैसे सैकड़ों महानायको के वारे कितने लोग जानते है। सुभाश चन्द्र बोस, जैसे महानायक की कहानी कितने लोग जानते है। आज अधिकास लोग स्वत्रंता  सेनानी के रुप में सिर्फ उनका नाम  जानते है, उनकी जीवनी, उनका अमुल्य बलिदान, अद्भुत रण कौशल, ओजस्वी वाणी, आश्चर्य कर देने वाली संगठन क्षमता  के बारे मे शायद ही किसी कक्षा में पढायी जाती है। यह भी अंग्रेजो के साथ हुई डील का हिस्सा था की सुभास चन्द्र बोस जब भी मिलेगें जिन्दा या मुर्दा, अंग्रेजो को सौंपना होगा और यह डील हमारे तथा कथित महान नेता जवाहरलाल नेहरु और गान्धी जी ने अंग्रेजो के साथ किया था।

अंग्रेजो के साथ हुई डील (सत्ता हस्तांतरण) के मुख्य और विध्वशकारी बाते जानने के लिए इसे क्लिक करें। http://deshdharm.blogspot.in/2011/09/transfer-of-power-agreement-india.html

Thursday, February 7, 2013

दवा की खरीद से पहले इसके अन्य विकल्पों की जाँच कर लें।


अक्सर हमलोग डाक्टर साहव के द्वारा लिखी गयी (Prescribed) दवाओं को या Prescription मे लिखी दवाओं को, बिना किसी भी शंका  के किसी केमिस्ट के दुकान से जाकर ले आते है। 
मैं भी यही करता हूँ, डाक्टर के द्वारा लिखी गयी दवाओं को बिना कोई समझौता, सीधे किसी भी केमिस्ट के दुकान से ले आता हूँ। अगर कोई दवा किसी केमिस्ट के यहाँ नहीं मिलती है तो हम उस विशेष दवा की खोज मे हम केमिस्ट दर केमिस्ट भटकते है।
हमलोग कभी यह जानने की कोशिश ही नही करते कि डाक्टर  साहब ने जो ब्रान्डेड दवा लिखी है, उसी composition की दवा अनेको कम्पनियां बनाती है। किसी एक कम्पनी की दवा नही मिली तो उसी क्म्पोजिसन की दवा दुसरे कम्पनी की ले लें,  यह हम सोचते भी नहीं हैं।
कोई भी डाक्टर सभी कम्पनियों की दवाओं के बारे नहीं जान सकता, वे ज्यादातर काफी विख्यात या बड़ी कम्पनियों की दवाये लिखते हैं या उस कम्पनी की जिसके मेडिकल रिप्रेजेंटिटिव उन्हें काफी बड़े बड़े उपहार या बड़ी कमीसन देते है। और हम डाक्टर साहब की लिखी ब्राण्डेड दवा ही खरीदने की जिद मे पड़ जाते है। हो सकता है वह Particular  दवा, डाक्टर साहब के दारा सुझाये गये किसी खास दवा दुकान से ही मिलेगी।
कुछ दिन पहले मुझे दाँत दर्द हुआ था इसके लिये डाक्टर ने मुझे SUMO (500+100)  दिया था। इस दवा मे 500mg Paracetamol और 100mg Nimesulide होता है। केमिस्ट मेरे जानपहचान के थे, उन्होने मुझसे कहा कि क्या यही दवा लेनी है या इस कम्पोजिसन का कोई दुसरी दवा भी चलेगी। उन्होने यह भी बताया कि, एक आम दवा है और इस कम्पोजिसन का सैकड़ों दवाईयाँ, जो कि SUMO से न सिर्फ काफी सस्ती है वरन गुनवत्ता मे किसी तरह भी कमतर नही है, उपलब्ध है।  SUMO  जहाँ Rs.43.50 मे दस टैबलेट आती है, वहीं कुछ कम्पनियाँ इस कम्पोजिसन की दवा मात्र मात्र 4 से 10 रुपये से लेकर उपलब्ध करा रही है।   और मुझे उसने उसके पास उपलब्ध Mankind Pharma का Mahagesic  दवा दे दिया जिसका मुल्य मात्र 17/-प्रति 10 टैबलेट रुपये लिया।
मुझे कुछ और उत्सुकता हुई। मैने कुछ और दवाइयो के बारे मे भी जानने की कोशिश किया, अपने मित्र केमिस्ट से कुछ विशेष जानकारी हासिल किया। उच्च रक्तचाप की एक बहुत ही आम दवा है- Amlodipin 5mg. यह दवा भी विभिन्न नामो से 50 पैसे से लेकर 8.50 रुपये प्रति टेबलेट मार्केट मे उपलब्ध है। 
डाक्टर साहब के द्वारा लिखी जाने वाली विभिन्न एन्टीवायोटिक्स के लिए भी यही बात आती है। Ciprofloxacin-500mg एक बहुत ही आम एन्टीवायोटिक्स है, यह दवा भी विभिन्न ब्राण्डेड नामों से बाजार मे एक रुपये से आठ रुपये प्रति टैबलेट मे उपलब्ध है. इस तरह  सभी दवाओं का बिना इसके  कम्पोजिसन से कोई समझौता किए दर्जनों विकल्प   बाजार मे उपलब्ध है, और उनके मूल्यों मे भी काफी अन्तर है। 
Don’t be surprised to see that same drug is available at very low cost also. And that to by other reputed manufacturer. E.g. Metocard XL 50 is for Rs.62.0 and same drug by Cipla (Meplo) is available only @ 7.00 only.

क्या हम डाक्टर से यह पुछने का साहस रखते है, कि उनके द्वारा लिखी दवा से सस्ती दवा लिखें, नही ना? इसी कसमकस और दवा बाजार मे मची इस अंधेरगर्दी से आम जनता को बचाने के लिए विनोद कुमार मेमोरियल ट्रस्ट ने एक website “medguideindia.com”   आम जनता के लिए लांच किया है। इसमे Dडाक्टर के द्वारा लिखी दवा के नाम को सर्च कर, उस दवा से जुड़ी सारी जानकारी यथा composition, इसकी मात्रा, साईड इफेक्ट प्राप्त कर सकते है। इसके साथ ही इस कम्पोजिसन की अन्य कम्पनियों की दवाओं का लिस्ट और उसके बाजार मुल्य सभी मिल जायेगें। यदि कोई डाक्टर किसी अन्जान कम्पनी की दवा लिखते है तो उनसे उस दवा का क्म्पोजिसन लिखने के लिए हम कह सकते है, ताकि उस कम्पोजिसन की सस्ती दवा हम ले सकें।
कुछ दवा कम्पनियाँ डाक्टर को किसी खास दवा के लिए 20 से 30% कमीसन देती है और वह दवा सिर्फ डाक्टर के द्वारा बताये केमिस्ट के दुकान से ही मिलेगी। हो सकता वह दवा इस वेवसाईट नही भी मिले, क्योंकि छोटी छोटी कम्पनियों अपने प्रोडक्ट को इसमे शामिल नहीं किया है,और डाक्टर साहब भी दवा की क्म्पोजिसन नही बतलाना चाहेगें तब आपके पास सिर्फ वही दवा लेने के सिवाय कोई और विकल्प नही बचेगा, इस स्थिति मे आप उस खास दवा की थोड़ी मात्रा लें, उसकी  composition जान लें और फिर उस दवा का विकल्प खोजें।   
इस साईट के मदद से आप दवाओं पर होने वाले खर्चों को कम कर सकते है।  मेडिकल प्रोफेसन को मानवता का सेवा से जोड़ा जाता रहा है। पर आज यह अन्य प्रोफेसनों कि भांति सिर्फ और सिर्फ पैसे कमाने /बनाने से जुड़ चुका है (मुट्ठी भर ईमानदार डाक्टरों को छोड़कर)  मरीज को डाक्टर साहब client समझते हैं, और उसकी हैसियत के अनुसार ईलाज होता है, अधिक से अधिक टेस्ट/एक्सरे, अल्ट्रासाउंड,और महंगी दवाओं सभी कुछ मरीज की हैसियत पर निर्भर होता न कि मरीज के रोग को देखकर। 

  

Sunday, January 6, 2013


भगवान राम  की प्रामाणिकता

 हम भारतीय विश्व की प्राचीनतम सभ्यता के वारिस है तथा हमें अपने गौरवशाली इतिहास तथा उत्कृष्ट प्राचीन संस्कृति पर गर्व होना चाहिए। किंतु दीर्घकाल की परतंत्रता ने हमारे गौरव को इतना गहरा आघात पहुंचाया कि हम अपनी प्राचीन सभ्यता तथा संस्कृति के बारे में खोज करने की तथा उसको समझने की इच्छा ही छोड़ बैठे। परंतु स्वतंत्र भारत में पले तथा पढ़े-लिखे युवक-युवतियां सत्य की खोज करने में समर्थ है तथा छानबीन के आधार पर निर्धारित तथ्यों तथा जीवन मूल्यों को विश्व के आगे गर्वपूर्वक रखने का साहस भी रखते है। श्रीराम द्वारा स्थापित आदर्श हमारी प्राचीन परंपराओं तथा जीवन मूल्यों के अभिन्न अंग है। वास्तव में श्रीराम भारतीयों के रोम-रोम में बसे है। रामसेतु पर उठ रहे तरह-तरह के सवालों से श्रद्धालु जनों की जहां भावना आहत हो रही है,वहीं लोगों में इन प्रश्नों के समाधान की जिज्ञासा भी है। हम इन प्रश्नों के उत्तर खोजने का प्रयत्‍‌न करे:- श्रीराम की कहानी प्रथम बार महर्षि वाल्मीकि ने लिखी थी। वाल्मीकि रामायण श्रीराम के अयोध्या में सिंहासनारूढ़ होने के बाद लिखी गई। महर्षि वाल्मीकि एक महान खगोलविद् थे। उन्होंने राम के जीवन में घटित घटनाओं से संबंधित तत्कालीन ग्रह, नक्षत्र और राशियों की स्थिति का वर्णन किया है। इन खगोलीय स्थितियों की वास्तविक तिथियां 'प्लैनेटेरियम साफ्टवेयर' के माध्यम से जानी जा सकती है। भारतीय राजस्व सेवा में कार्यरत पुष्कर भटनागर ने अमेरिका से 'प्लैनेटेरियम गोल्ड' नामक साफ्टवेयर प्राप्त किया, जिससे सूर्य/ चंद्रमा के ग्रहण की तिथियां तथा अन्य ग्रहों की स्थिति तथा पृथ्वी से उनकी दूरी वैज्ञानिक तथा खगोलीय पद्धति से जानी जा सकती है। इसके द्वारा उन्होंने महर्षि वाल्मीकि द्वारा वर्णित खगोलीय स्थितियों के आधार पर आधुनिक अंग्रेजी कैलेण्डर की तारीखें निकाली है। इस प्रकार उन्होंने श्रीराम के जन्म से लेकर 14 वर्ष के वनवास के बाद वापस अयोध्या पहुंचने तक की घटनाओं की तिथियों का पता लगाया है। इन सबका अत्यंत रोचक एवं विश्वसनीय वर्णन उन्होंने अपनी पुस्तक 'डेटिंग द एरा ऑफ लार्ड राम'   (इस कित्ताब को लिंक से डाउनलोड कर सकते है) में किया है। इसमें से कुछ महत्वपूर्ण उदाहरण यहां भी प्रस्तुत किए जा रहे है।
श्रीराम की जन्म तिथि
 महर्षि वाल्मीकि ने बालकाण्ड के सर्ग 18 के श्लोक 8 और 9 में वर्णन किया है कि श्रीराम का जन्म चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को हुआ। उस समय सूर्य,मंगल,गुरु,शनि व शुक्र ये पांच ग्रह उच्च स्थान में विद्यमान थे तथा लग्न में चंद्रमा के साथ बृहस्पति विराजमान थे। ग्रहों,नक्षत्रों तथा राशियों की स्थिति इस प्रकार थी-सूर्य मेष में,मंगल मकर में,बृहस्पति कर्क में, शनि तुला में और शुक्र मीन में थे। चैत्र माह में शुक्ल पक्ष नवमी की दोपहर 12 बजे का समय था।

जब उपर्युक्त खगोलीय स्थिति को कंप्यूटर में डाला गया तो 'प्लैनेटेरियम गोल्ड साफ्टवेयर' के माध्यम से यह निर्धारित किया गया कि 10 जनवरी, 5114 ई.पू. दोपहर के समय अयोध्या के लेटीच्यूड तथा लांगीच्यूड से ग्रहों, नक्षत्रों तथा राशियों की स्थिति बिल्कुल वही थी, जो महर्षि वाल्मीकि ने वर्णित की है। इस प्रकार श्रीराम का जन्म 10 जनवरी सन् 5114 ई. पू.(7117 वर्ष पूर्व)को हुआ जो भारतीय कैलेण्डर के अनुसार चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि है और समय 12 बजे से 1 बजे के बीच का है।
वाल्मीकि रामायण के अयोध्या काण्ड (2/4/18) के अनुसार महाराजा दशरथ श्रीराम का राज्याभिषेक करना चाहते थे क्योंकि उस समय उनका(दशरथ जी) जन्म नक्षत्र सूर्य, मंगल और राहु से घिरा हुआ था। ऐसी खगोलीय स्थिति में या तो राजा मारा जाता है या वह किसी षड्यंत्र का शिकार हो जाता है। राजा दशरथ मीन राशि के थे और उनका नक्षत्र रेवती था ये सभी तथ्य कंप्यूटर में डाले तो पाया कि 5 जनवरी वर्ष 5089 ई.पू.के दिन सूर्य,मंगल और राहु तीनों मीन राशि के रेवती नक्षत्र पर स्थित थे। यह सर्वविदित है कि राज्य तिलक वाले दिन ही राम को वनवास जाना पड़ा था। इस प्रकार यह वही दिन था जब श्रीराम को अयोध्या छोड़ कर 14 वर्ष के लिए वन में जाना पड़ा। उस समय श्रीराम की आयु 25 वर्ष (5114- 5089) की निकलती है तथा वाल्मीकि रामायण में अनेक श्लोक यह इंगित करते है कि जब श्रीराम ने 14 वर्ष के लिए अयोध्या से वनवास को प्रस्थान किया तब वे 25 वर्ष के थे।
खर-दूषण के साथ युद्ध के समय सूर्यग्रहण
 वाल्मीकि रामायण के अनुसार वनवास के 13 वें साल के मध्य में श्रीराम का खर-दूषण से युद्ध हुआ तथा उस समय सूर्यग्रहण लगा था और मंगल ग्रहों के मध्य में था। जब इस तारीख के बारे में कंप्यूटर साफ्टवेयर के माध्यम से जांच की गई तो पता चला कि यह तिथि 5 अक्टूबर 5077 ई.पू. ; अमावस्या थी। इस दिन सूर्य ग्रहण हुआ जो पंचवटी (20 डिग्री सेल्शियस एन 73 डिग्री सेल्शियस इ) से देखा जा सकता था। उस दिन ग्रहों की स्थिति बिल्कुल वैसी ही थी, जैसी वाल्मीकि जी ने वर्णित की- मंगल ग्रह बीच में था-एक दिशा में शुक्र और बुध तथा दूसरी दिशा में सूर्य तथा शनि थे।
अन्य महत्वपूर्ण तिथियां
 किसी एक समय पर बारह में से छह राशियों को ही आकाश में देखा जा सकता है। वाल्मीकि रामायण में हनुमान के लंका से वापस समुद्र पार आने के समय आठ राशियों, ग्रहों तथा नक्षत्रों के दृश्य को अत्यंत रोचक ढंग से वर्णित किया गया है। ये खगोलीय स्थिति श्री भटनागर द्वारा प्लैनेटेरियम के माध्यम से प्रिन्ट किए हुए 14 सितंबर 5076 ई.पू. की सुबह 6:30 बजे से सुबह 11 बजे तक के आकाश से बिल्कुल मिलती है। इसी प्रकार अन्य अध्यायों में वाल्मीकि द्वारा वर्णित ग्रहों की स्थिति के अनुसार कई बार दूसरी घटनाओं की तिथियां भी साफ्टवेयर के माध्यम से निकाली गई जैसे श्रीराम ने अपने 14 वर्ष के वनवास की यात्रा 2 जनवरी 5076 ई.पू.को पूर्ण की और ये दिन चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी ही था। इस प्रकार जब श्रीराम अयोध्या लौटे तो वे 39 वर्ष के थे (5114-5075)
वाल्मीकि रामायण के अनुसार श्रीराम की सेना ने रामेश्वरम से श्रीलंका तक समुद्र के ऊपर पुल बनाया। इसी पुल (रामसेतु) को पार कर श्रीराम ने रावण पर विजय पाई। हाल ही में नासा ने इंटरनेट पर एक सेतु के वो अवशेष दिखाए है, जो पॉक स्ट्रेट में समुद्र के भीतर रामेश्वरम(धनुषकोटि) से लंका में तलाई मन्नार तक 30 किलोमीटर लंबे रास्ते में पड़े है। वास्तव में वाल्मीकि रामायण में लिखा है कि विश्वकर्मा की तरह नल एक महान शिल्पकार थे जिनके मार्गदर्शन में पुल का निर्माण करवाया गया। यह निर्माण वानर सेना द्वारा यंत्रों के उपयोग से समुद्र तट पर लाई गई शिलाओं, चट्टानों, पेड़ों तथा लकड़ियों के उपयोग से किया गया। महान शिल्पकार नल के निर्देशानुसार महाबलि वानर बड़ी-बड़ी शिलाओं तथा चट्टानों को उखाड़कर यंत्रों द्वारा समुद्र तट पर ले आते थे। साथ ही वो बहुत से बड़े-बड़े वृक्षों को, जिनमें ताड़, नारियल,बकुल,आम,अशोक आदि शामिल थे, समुद्र तट पर पहुंचाते थे। नल ने कई वानरों को बहुत लम्बी रस्सियां दे दोनों तरफ खड़ा कर दिया था। इन रस्सियों के बीचोबीच पत्थर,चट्टानें, वृक्ष तथा लताएं डालकर वानर सेतु बांध रहे थे। इसे बांधने में 5 दिन का समय लगा। यह पुल श्रीराम द्वारा तीन दिन की खोजबीन के बाद चुने हुए समुद्र के उस भाग पर बनवाया गया जहां पानी बहुत कम गहरा था तथा जलमग्न भूमार्ग पहले से ही उपलब्ध था। इसलिए यह विवाद व्यर्थ है कि रामसेतु मानव निर्मित है या नहीं, क्योंकि यह पुल जलमग्न, द्वीपों, पर्वतों तथा बरेतीयों वाले प्राकृतिक मार्गो को जोड़कर उनके ऊपर ही बनवाया गया था।
मानव निर्मित होने के पक्ष में मत और शोध
भू-विज्ञान विभाग, भारत सरकार, का शोध (मार्च 2007), परन्तु, कुछ मज़बूत तर्को के साथ इसे मानव निर्मित बताता है। शोध का सारांश कुछ इस प्रकार है -


रामसेतु प्राकृतिक तौर पर नहीं बना - कोरल चट्टानों और रीफ से बने इस पुल की स्थापना की पुष्टि आधुनिक सैटेलाइट द्वारा खींचे गये चित्रों की मदद से की गयी है जिसके अनुसार कहा गया है कि यह एक प्राकृतिक नहीं, बल्कि मानवीय रचना है और इस बात की पुष्टि जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया द्वारा पेश की गयी एक रिपोर्ट में की गयी है जिसे सरकार द्वारा जनता से छुपाया गया। जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (भारत सरकार का भू विज्ञान विभाग) के पूर्व निदेशक और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशन टैक्नोलॉजी के सदस्य डॉ. बद्रीनारायण कहते हैं कि इस तरह की प्राकृतिक बनावट मुश्किल से ही दिखती है। यह तभी हो सकता है, जब इसे किसी ने बनाया हो। कुछ शिलाखंड तो इतने हल्के हैं कि वे पानी पर तैर सकते हैं।

मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम की ऐतिहासिकता को चुनौती देनेवालों को चुनौती देता एक शोध सामने आया है, जो सिद्ध करता है कि राम पौराणिक नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक व्यक्तित्व थे। उनका जन्म 5114 ईसापूर्व 10 जनवरी को हुआ था। इस तरह अगली 10 जनवरी को राम के जन्म के 7122 साल पूरे हो जाएंगे।

श्री राम के बारे में यह शोध चेन्नई की एक गैरसरकारी संस्था भारत ज्ञान द्वारा पिछले छह वर्षो में किया गया है। मुंबई में अनेक वैज्ञानिकों, विद्वानों, व्यवसाय जगत की हस्तियों के सामने इस शोध से संबंधित तथ्यों पर प्रकाश डालते हुए इसके संस्थापक ट्रस्टी डीके हरी ने एक समारोह में बताया कि इस शोध में वाल्मीकि रामायण को मूल आधार मानते हुए अनेक वैज्ञानिक, ऐतिहासिक, भौगोलिक, ज्योतिषीय और पुरातात्विक तथ्यों की मदद ली गई है। जिनके आधार पर कहा जा सकता है कि राम हमारे गौरवशाली इतिहास का ही एक अंग थे। इस समारोह का आयोजन भारत ज्ञान ने आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर की संस्था आर्ट आफ लिविंग के साथ मिलकर किया था।

शोध से संबंधित प्रस्तुतिकरण के बाद इसका सीडी एवं वेबसाइट लांच करते हुए श्री श्री रविशंकर ने कहा कि हमारे देश को ऐसे वैज्ञानिक शोधों की आवश्यकता है, जो सिलसिलेवार तथ्यों पर आधारित हों और हमारी हमारी प्राचीन परंपराओं का खुलासा करते हों। लोगों से ऐसे शोधों को प्रोत्साहन देने की अपील करते हुए श्री श्री रविशंकर ने कहा कि हमें ऐसे तथ्यों के आधार पर दूसरों के सामने अपनी बात रखनी चाहिए। अन्यथा लोग हमारे इतिहास को पौराणिक कहानियां ही बताते रहेंगे। गौरतलब है कि कुछ वर्ष पूर्व वाराणसी स्थित श्रीमद् आद्यजगद्गुरु शंकराचार्य शोध संस्थान के संस्थापक स्वामी ज्ञानानंद सरस्वती ने भी अनेक संस्कृत ग्रंथों के आधार पर राम और कृष्ण की ऐतिहासिकता को स्थापित करने का दावा किया था।

Thursday, July 5, 2012

बाबा रामदेव और काला धन का आन्दोलन


परम श्रद्धेय बाबा रामदेव जी देश मे एक अनोखा आन्दोलन चला रखें हैं। वैसे तो यह आन्दोलन देश के त्तथाकथित वैसे पार्टियों को चलाना चाहिये था जो अपने आपको समाज के सबसे निचले पायदान पर रहने वाले लोगों की पार्टी कहते हैं यथा कम्युनिस्ट पार्टियाँ या विपक्षी पार्टी। पर जब सत्ता के सबसे उपरी  पायदान पर भ्रष्टाचार अपने चरम पर पहुँच गया हो, करोड़ की राशि भी करोड़ को छू रही हो, महँगाई नित नयी उँचाइयों को छू रही हो फिर भी समाज के राजनितिक दलों में किंकर्तव्यविमूढ़ता की स्थिति पैदा हो गयी है,। एक ओर देश की आम जनता, गरीब जनता महँगाई से त्रस्त होकर त्राहि त्राहि कर रही है वहीं दसरी ओर देश के कुछ मुट्ठी भर लोगों का कई लाख करोड़ विदेशी बैकों में काला धन के रुप मे पड़ा है। यही नहीं देश के अन्दर भी हजारो करोड़ रुपया भ्रष्टाचार और कदाचार मे लिप्त हजारों सरकारी बाबुओं और नेताओं की तिजोरियों की शोभा बढा रहें है। यदि इन काले धन का कुछ प्रतिशत भी बाहर आ जाये तो महँगाई को कुछ हद तक काबु में रखा जा सकता है। इस किंकर्तव्यविमूढ़ता की स्तिथि मे एक सन्यासी बाबा रामदेव और एक मुर्धन्य समाजसेवी अन्ना हजारे अपने अपने कुटिया से निकल कर देशव्यापी आन्दोलन करने की धृष्टता किये हैं। दोनो किसी भी व्यक्तिगत स्वार्थ से विरक्त सिर्फ देश की जनता के कष्ट से द्ग्ध होकर, सरकार के भ्रष्टाचार के विरुद्ध, आन्दोलन के लिए आम जनता से आग्रह किये हैं। हमारे देश में जब जब राजा भोग विलास और भ्रष्टाचार मे लिप्त हुआ है, साधु सन्यासी आगे आकर राजा को सत्ताच्युत करने का काम किये है।

मात्र हजार रुपये घुस लेते हुए पकड़ाने पर निगरानी या CBI उसके पुरे इतिहास को खंगाल डालती है पर लाखों करोड़ के घपला करने वाले मंत्रीगण का कुछ नही बिगड़ता।शायद ही किसी राजनितिज्ञ को भ्रष्टाचार और कदाचार मे सजा मिली हो। दस बीस साल केस चलता रहता है और हमारे ये नेतागण राज भोगते रहते है।  
बाबा रामदेव जहाँ कालाधन के विरुद्ध बिगुल फुकें है, अन्ना हजारे  देश के सभी विभागों के जड़ मे समा चुके भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए लोकपाल विधेयक पास कराने के लिए आन्दोलन और सत्याग्रह कर रहे है।
बाबा रामदेव कहते है कि 500 और 1000 रुपये के नोट को अविलम्ब प्रचलन से रोक देना चाहिए। मुझे भी यह माँग भुत ही बेतुका लगा, पर थोडी गंभीरता से इस पर मनन किया तो इसके इतने सारे फायदे नजर मे आये कि मुझे रामदेव बाबा का यह  माँग सबसे प्रमुख और देश के वर्तमान आर्थिक स्वास्थय के लिए एक सबसे कारगर उपाय हो सकता है।
मेरे विचार मे 500 और 1000 रुपये  के नोट को प्रचलन से बाहर न करके , वर्तमान में प्रचलित नोट का रुपान्तरण करना सबसे अच्छा रहेगा। एक गोपनीय तैयारी के साथ पुरी मात्रा में नये रुप में एवं नये सिरीज का 500 और 1000 रुपये के नोट को छपवा लें। अब सभी भारतीय नागरिकों को नोटिस दिया जाय कि वे एक सप्ताह से एक महिना के अंदर अपने अपने 1000 और 500 रुपये के पूराने नोट को बदल लें, पूराने नोट के बदले नये डिजाईन के नोट मिलेंगें, एक पैन नम्बर के व्यक्ति को मात्र 50,000रुपये तक के नोट के बदले नये नोट मिलेंगे  और शेष नोट को बैंक के खाते मे जमा करना होगा।  यह नोट बदलने की क्रिया एक से दो महीने तक चलेगें। आजक्ल सभी बैंक सी बी एस यानी पुरी तरह कमप्युटरिकृत हो चुकें है। अत: नोट बदलने के लिए एक पैन नम्बर से एक बार ही नोट बदला जाये इसका पुरा व्यवस्था करना होगा।
यह एक थोडी कठिन प्रक्रिया अवश्य है, पर इससे इतने सारे फायदे होगें की जिस आर्थिक परेशानी से हमारा देश अभी गुजर रहा है इसका सबसे कारगर उपाय भी है।  इसके होने वाले फायदे निम्न हो सकते हैं।
  
1)    यह सर्वविदित है कि हमारे देश में हजारो करोड़ रुपये का जाली करेसीं नोट प्रचलन मे चल रहा है। और इसके सबसे अधिक पीड़ित गरीब तबके के लोग ही होते है जो इसे अच्छी तरह नहीं पहचान पाते। दरअसल  भारत सरकार को भी पता नहीं है कि देश में कितना जाली नोट प्रचलन मे हैं। समाज में उपलब्ध जाली नोटों में 95% नोट 500रुपये  और 1000रुपये के ही हैं। इस प्रक्रिया से एक तरफ तो सभी जाली नोट पकड में आ जायेगें। विदेशों से आने वाले जाली नोट कुछ दिनों के लिए रुक जायेगा, जब तक की taskarतस्कर नये नोट का प्रारुप न तैयार कर लें। सबसे बडी बात यह है कि अधिकांश जाली नोट प्रचलन मे हैं न कि लौकरों मे बन्द,। एक साथ इतने ज्यादा नोट पकड मे आने से ही मुद्रास्फिति पर जबर्दस्त प्रभाव पडेगा।

2)    अभी हाल में सरकारी आफिसरों पर पडे छापों मे जिस अनुपात मे करोड़ो के करेन्सी नोट, बैंक के लाकरों और घरों में पकड़ मे आये है इससे यह अनुमान लगाय जा सकता है कि हमारे देश मे करीब एक लाख करोड़ से उपर काला धन सोना/रियल स्टेट के अलाबे 500रुपये और 1000रुपये के नोट के शक्ल मे तिजोरियों और बैंकों के लाकरों मे बन्द पडे है। सभी एक झटके मे बाहर आ जायेगें। चुकिं यह काला धन है, (जिसका लोग अपने इन्कम टैक्स रिटर्न मे नही दिखाया गया है) सरकार इसको सरकारी धन घोषित कर सकती या 30% तो 50% आयकर के रुप मे काट सकती है। इससे सरकार के पास एक बार मे ही 50000 करोड़ से भी ज्यादा का धन आ जायेगा और सरकारी उपक्रमों के डिसइन्वेस्ट्मेंट की आवश्यकता नही होगी।

3)          जब 50,000 रुपये से उपर का प्रत्येक लेन देन चाहे बैंक से पैसा निकालना हो या जमा करना हो, जमीन/ फ्लैट/मकान की खरीद हो, सोने मे निवेश हो, बडी गाडी की खरीद हो सभी के लिए पैन कार्ड नम्बर आवश्यक हो गया है। परन्तु यह सभी ट्रांसजेक्सन अलग अलग होते हैं, इनका कहीं कोई सामुहिक रिकार्ड नहीं होता है। एक व्यक्ति अपने पैन नम्बर के तहत किसी वर्ष विशेष मे कितना निवेश रियल स्टेट मे किया, सोने में किया, बडी बडी गाड़ियों में किया, यह पता लगाना  असंभव नहीं तो कठिन अवश्य है। यदि एक पैन कार्ड के तहत होने वाले सभी ट्रांसजेक्सन यदि एक सुपर कमप्युटर से जोड़ दिया जाये तो यह पता लगाना आसान हो जायेगा कि उस विशेष पैन कार्ड नम्बर के तहत कितना रुपया का कैश ट्रांसजेक्सन, कितना निवेश रियल स्टेट और कितना सोना मे निवेश हुआ है। अभी एक पैन नम्बर के तहत, म्युचुअल फंड मे किया जाने वाला sसारा निवेश जाना जा सकता है। ठीक इसी तरह यदि किसी भी पैन नम्बर के तहत होने वाले सभी ट्रांसजेक्सन अनिवार्य रुप से एक सुपर कमप्युटर से जोड़ दिये जायें और उस पैन नम्बर के तहत भरे जाने वाले आयकर रीटर्न के साथ उसकी समीक्षा की जाये, तो बिना कोई लोकपाल, सीभीसी, सीबीआई, के भ्रष्टाचार से काफी हद तक मुकाबला किया जा सकता है।