Tuesday, May 1, 2012


कहने को तो हम 21वीं शताब्दी में चल रहें हैं, भारत दुनिया मे महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर है, बैलिस्टिक मिसाईल बनाने बाले मात्र छ: देशों की ष्रेणी मे हम आ गये है। पर यह अत्यधिक दुर्भाग्य का बात है कि हमारे देश मे अधिकारियों की लापरवाही के साथ साथ अनाज भंडारण के लिए पर्याप्त गोदामों की कमी के क्रण लाखों टन गेहूँ/चावल सड़ जाता है। ये अनाज रेलवे स्टेशनों पर या अन्य जगह बिल्कुल खुले मे आपराधिक लापरवाही से छोड़ दिये जाते हैं। मिडिया मे भी यह खबर तब बनती है जब अनाज पुरी तरह सड़ जाता है और जानवरों के खाने लायक भी नही बचता है। आजतक किसी भी पदाधिकारी को शायद ही सजा मिली हो।
 

पुरे विश्व मे खाद्यान्न को बर्बाद होने से बचाने के लिए अत्याधुनिक तरीके अपनायें जा  रहें हैं, हमारे देश मे हर वर्ष करीब एक लाख टन से भी अधिक, भारत के मेहनतकश किसानों के खुन पसीने से पैदा किया बहुमुल्य अनाज, सरकारी अफसरों की लापरवाही और अदूरदर्शी राजनेताओं के कारण सड़ जाता है।     

लाखों करोड़ों के घोटालो के देश मे, दलालो को देने के लिये 350 करोड़ (हेलिकाप्टर घोटाला) तो है पर अनाज रखने के लिए बड़े गोदाम बनाने के लिए कुछ करोड़ रुपये नहीं है। कामनवेल्थ खेलों में हजारों करोड़ के घटालों का कुछ प्रतिशत भी हमारे नेता देश के खातिर निकाल दे, तो दर्जनों अत्याधुनिक गोदाम बनाये जा सकते हैं और अनाज को सड़ने से बचाया जा सकता है।

अभी हाल ही पंजाब में हजारो टन गेहूँ इसलिये सड़ गया कि पिछले साल खरीदे गये अनाज को रखने के लिए जगह ही नहीं है। मात्र कुछ ही दिनों में गेहूँ की नई फसल आने बाली है उसकी खरीद भी होनी है, तो गेहूँ कहाँ रखेगें।

भारत मे ही अत्यंत ही पिछड़े इलाको के गावों में करीब 20% से भी अधिक आबादी भयंकर गरीबी मे दिन गुजार रही हैं, उन्हें खाने को अनाज नहीं मिल रहा है। dusarदुसरी ओर पिछले कई वर्षों से लाखो टन अनाज विभिन्न रेलने स्टेशनों पर खुले प्लेटफार्म/गोदामों में/ खुले गोदामों में सड़ जा रहा है। यह कितना विचित्र विरोधाभास है। सुप्रीम कोर्ट ने इसे स्वत; संज्ञान लेते हुए पिछ्ले वर्ष ही कहा था कि यदि सरकार के पास प्रर्याप्त सँख्या मे गोदाम नहीं है तो खुले मे रखे गये अनाजों को गरीबों मे बाँट दिया जाना चाहिए, इस पर हमारे तथाकथित मुर्धन्य विद्वान मंत्री गण को पेट मे दर्द होने लगा। मतलब साफ है अनाज को सड़ने देगें पर इसे गरीबों में नहीं बाँटेगें।

पिछले वर्ष पटना रेलवे स्टेशन पर बाढ पीड़ितों के लिए पंजाब से आया गेहूँ सिर्फ इसलिए सड़ गया क्यों कि उस अनाज को बिहार सरकार ने उठाया नहींbihAr sarkA। एक तरफ बाढग्रस्त क्षेत्रों में लोग एक-एक मुट्ठी अनाज के लिए मारामारी चल रहा था और सरकारी तंत्र  के आपराधिक लापरवाही के कारण गिफ्ट मे आया गेहूँ सड़ गया,।

कितना आश्चर्य की बात है हम से ज्यादा अंगेज अनाज के मुल्य को समझते थे और अनाज भंडारण के लिए 1786 मे गर्वनर जेनरल वारेन हेस्टिंग ने 140000 MT क्षमता का गोलघर पटना में बनबाया था। 


अभी  समय की मांग है, सभी राज्यों के छोटे छोटे शहरों मे बडी तादाद में सरकारी अत्याधुनिक गोदाम और कोल्ड स्टोरेज बनायें जायें, इसके लिए बड़े व्यापारिक घरानों कि भी मदद ली जा सकती है। बस अब हम प्रण करें बहुत सड़ चुका अब एक अनाज का एक दाना भी सड़ने नहीं देगें।