Sunday, June 3, 2012

एक क्रिकेट  सभी खेलों पर भारी
पिछले कई दिनों से या कहें महिनों से सचिन रमेश तेन्डुलकर को भारत रत्न देने की चर्चा चल रही है, लगभग सभी खेल प्रेमी बड़े जोर से इसकी वकालत कर रहे हैं, हमारी केन्द्रीय सरकार भी सैद्धान्तिक रुप से सहमत भी है, मुख्य अवरोध भारत रत्न देने की प्रावधान है जो कि खेल के क्षेत्र मे है ही नहीं।

सचिन को भारत रत्न देने की इतनी पुरजोर वकालत हो रही है कि लगता है 110 करोड़ के देश में सिर्फ और सिर्फ सचिन ही भारत रत्न के पाने का सबसे अधिक गुण रखते हैं। सचिन एक वैसे खेल के खिलाड़ी हैं जो मात्र वे ही देश खेलते जो ब्रिटेन के उपनिवेश रहे हों।  भारत, आस्टेलिया, पाकिस्तान, बांगलादेश, दक्षिण अफ्रिका, वेस्ट ईंडीज, इंगलैड कुल छ: देश ही मुख्य रुप से क्रिकेट खेलते हैं। विकसित देश, अमेरिका, रुस, चीन, जर्मनी, फ्रांस, ईटली, आदि कोई देश क्रिकेट नहीं खेलता हैं। ओलम्पिक, एशियन गेम्स, कामनवेल्थ गेम्स आदि मे भी क्रिकेट शामिल नहीं है।

अब देखें भारत में क्रिकेट को आवश्यकता से ज्यादा महिमामंडित करने के कारण अन्य खेलों यथा, फुटबॉल, हाकी, एथेलिटिक्स आदि मे हम इतना पिछड़ गये कि एक समय हाकी में ओलिम्पिक जीतने वाला देश भारत आज पिछले कई बार से ओलम्पिक के लिए क्वालिफाइड भी नहीं हो पा रहा था। फुट्वाल में तो और भी बुरा हाल है। एक समय था गांव गांव में फुट्वाल टीम हुआ करती थी, बच्चों का छुट्टियों में, कबड्डी, छोटी कबड्डी, खो खो, आदि खेलना बड़ा आम था। सर्दियों में गावों के बीच फुटवाल मैच, कुश्ती, कबड्डी आदि खेलों के टुर्नामेंट होते थे और उसमे बड़ा भारी भीड़ जुटता था।



आज कोई बच्चा क्रिकेट छोड़ कर कोई और खेल खेलना ही नहीं चाहते। बस दो तीन बच्चे जमा हुए, किसी भी तरह तीन लकड़ियों का या पाँच छ: ईंटे सीधा जोड़ कर विकेट बना लिया और लगे क्रिक्र्ट खेलने।

120 करोड़ की आवादी वाला देश ओलम्पिक में एक अदद रजत और कांस्य पदक के लिए तरसता है वहीं इस क्रिकेट के जनक देश इंगलैंड और आस्ट्रेलिया अनेकों सोना, जीत कर देश का मान बढाते है। दरअसल इंगलैंड और आस्ट्रेलिया जैसे देश क्रिकेट के साथ साथ अन्य खेलों और एथलेटिक्स को भी समान रुप से या कहें कि और ज्यादा सहुलियत और अवशर के साथ साथ प्रशिक्षण दिया। हमारे देश में क्रिकेट खेलने वाले करोड़ों और अरबों मे खेलते हैं, वहीं हाँकी, फुटवाल, खेलने वाले फाकाकसीं या छोटी मोटी नौकरी से अपना गुजारा करते हैं।झारखंड मे ही महेन्द्र सिंह धौनी को जो सुविधायें और ईनाम झारर्खंड सरकार ने दी क्या उसका शंताश भी  अन्तरराष्ट्रीय स्तर के हाकी खिलाडियों को दिया गया। झारखंड की एक और प्रतिभावान  खिलाडी असुंता लकडा लदन ओलम्पिक के लिए क्वालिफाईड ईंडियन महिला हाकी टीम की कप्तान । राज्य सरकार से क्या वह उसी सुविधायों की हकदार नही।

क्रिकेट के, तीन चार वार शुन्य में आउट होने के बाद एक चौका या छक्का लगा देने वाले  खिलाड़ी को भी हम हीरो बना देते हैं। हमारा खेल टी0वी0 मीडिया का 80% से 90% समय क्रिकेट न्युज के लिए होता है और मात्र 10% से 20% प्रतिशत ही अन्य खेलों के लिए होता है।

आज क्रिकेट का जिला स्तरीय खिलाड़ी भी बडी आसानी से अच्छी नौकरी पा जाता है, जब कि अन्य खेलों का राज्य स्तरीय और राष्ट्र स्तरीय खिलाडी अपनी आजिविका के लिए एक अच्छी और सम्मानित नौकरी के लिए परेशान रहता है। मिडिया के गुणगान और क्रिकेट कमेंटरी के कारण एक राज्य स्तरीय खिलाडी भी समाज और प्रशासन के द्वारा वह सम्मान पाता है जो अन्य खेलों के अन्तरराष्ट्रीय स्तर के खिलाडी कल्पना भी नहीं करते। किसी भी बच्चे या अनपढ व्यक्ति से भी पूछ ले वह भी आपको क्रिकेट का कम से कम 20-25 खिलाड़ीयों का नाम बता देगा जब कि फुटवाल/हाकी/कुस्ती/एथलेटिक्स का किसी खिलाडी का नाम शायद ही किसी को याद होगा।  

अब आइये इस क्रिकेट के कमेंटरी और लाईव टी वी प्रोगामों का समाज पर क्या असर पड़ रहा है। भारत के साथ जब भी  कोई मैच चल रहा होता है, किसी भी सरकारी कार्यालय मे चले जायें आपको लगभग सभी टेबल खाली मिलेगा या कोई मिल भी गया तो कान मे रेडिओ लगाये मिलेगा या कमप्युटर पर लाईव स्कोर बोर्ड देख रहा होगा। बच्चे अपना पढाई छोड कर टी वी से चिपके मिलेगें। इस तरह न सिर्फ लाखो मैनडेज बर्बाद होता है ब्लकि सरकारी कार्यालयों का चक्कर काटने मे आम आदमी परेशान रहता है। भारत जैसे विकाश्शील देश में इस तरह की समय बर्बादी से हुए हानि का किसी ने आकलन नहीं किया है।

आज देश के किसी भी गली मुहल्ले में चले जायें, बच्चे आपको सिर्फ और सिर्फ क्रिकेट खेलते ही मिलेगें, अन्य खेलों का लगता है कुछ दिनों के बाद अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा। बच्चे के माता पिता भी सिर्फ और सिर्फ क्रिकेट खेलने को प्रोत्साहित करते हैं।

मैं भारत सरकार  और राज्य सरकार के साथ साथ देश के सभी सम्मानित व्यक्तियो से आग्रह करता हूँ कि क्रिकेट के खेलों का लाइव प्रसारण रोका जाये, हालांकि यह संभंव नहीं लगता है क्यों कि क्रिकेट प्रसारण से होने वाले अरवों रुपये की आय का बात  है।  


अब भी अगर हम क्रिकेट को इस तरह महिमामंडित करने से परहेज नहीं किये तो भविष्य में अन्य खेल सिर्फ किताबों मे ही दिखेगा। कम से कम हम क्रिकेट के जन्मदाता देश ब्रिटेन से तो सीख ही सकते है, कि किस तरह उसने क्रिकेट के साथ साथ फुट्वाल, एथलेटिक्स, हाकी आदि खेलो को प्रोत्साहित और विकास किया, वहाँ  फुट्वाल के खिलाडियों को क्रिकेट खिलाडी से ज्यादा सम्मान और पैसा मिलता है।